आज यूँ ही बैठे-बैठे खुद से बात करने की इच्छा हुई। आत्म मंथन व्यक्तित्व को निखारने का एक अच्छा तरीका है। जब आप स्वयं से सवाल करते हैं, तो जवाब की तलाश आपको एक बेहतर इंसान बनाती है। बस इसीलिए आँखें बंद कर अपने अंदर झांकना शुरू किया। उस अजीब सी शांति में अचानक एक आवाज़ सुनी। किसी की धड़कन की आवाज़ थी। थोड़ा और ध्यान लगाया तो मालूम हुआ कि ये तो मेरा ही दिल धड़क रहा है। मुंह से निकला – मैं ज़िंदा हूँ। फिर चलती हुई सांसों को महसूस किया। मैं ज़िंदा हूँ। क्या मैं वाकई ज़िंदा हूँ ? क्या सांसों का चलना और दिल का धड़कना ही काफी है ज़िंदा होने के लिए ?तो लीजिए खुद से किया जाने वाला आज का सवाल मुझे मिल गया । क्या होता है ज़िंदा होना ? क्या होती है ये ज़िंदगी? मेरे लिए क्या हैं इसके मायने?
जवाब के लिए आंख बंद कर, मन के समंदर में डुबकी लगाई, तो एक सीप नहीं, ढेर सारे मोती हाथ लगे — सरपट दौड़ती इस दुनिया में, दो पल का ठहराव है ज़िंदगी। जब सभी बस सवालों के घेरे बनाने में माहिर हों, तब जवाब देने की हिमाक़त है ज़िंदगी। जहाँ लोगों के दिलों में घर केवल सूरतें देख कर बनते हों, वहाँ अपनी सीरत से पहचान बनाने का अंदाज़ है ज़िंदगी।
जिस दुनिया में हर कोई, दूसरे का गला काट, उसकी लाश को सीढ़ी बना के ऊँचा उठने में लगा हो, वहाँ दूसरों को झुक कर उठाने की मिसाल है ज़िंदगी।
हर तरफ लोगों की गूँजती आवाज़ों के शोर में, अपने मन की आवाज़ को सुन पाना है ज़िंदगी। लोग आंखों में आंखें डालकर जहाँ अपना ज़मीर बेच देते हैं, वहाँ खुद से नज़र मिला पाना है ज़िंदगी।
बेईमानी के नरम बिछौने पर जहाँ करवटें बदल कर कटती हों रातें, वहाँ ईमानदारी की पाषाण सेज पर भी जो आ जाए, वो सुकून की नींद है ज़िंदगी। जब दूसरों की तकलीफ की आग से सब के दिलों को ठंडक मिलती हो, तब औरों को हंसता देख आपके चेहरे पर जो बिखर जाए वो मुस्कान है ज़िंदगी।
हर पल रंग बदलती इस दुनिया में अपने वजूद को मिटने नहीं देने का इरादा है ज़िंदगी। लोगों के एतबार को छलनी करना जहाँ आदत बन गई हो, वहाँ अपने आप पर यकीन रखने का वादा है ज़िंदगी। जहां लिबास देखकर लोगों के किरदार तय होते हों, वहाँ अपने किरदार को अपना लिबास बनाने का हौसला है ज़िंदगी। बिना वजह, बस ऐसे ही जी रही इस दुनिया में, जो दूसरों को उनके होने की सार्थकता बयां कर जाए वो दास्तान है ज़िंदगी।
तो बताइए क्या ज़िंदा हैं आप ?
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